जब सब आरती कर रहे थे वह पौधों को पानी देने में मगन था भीतर ही भीतर जब सब अपनी मनौतियों में थे सराबोर वह दुखी था - कि अंततः उस बिल्ली को बचाने में नहीं हुआ कामयाब बँगले में संपन्नता थी हर जगह पर उसे गम था आदमी के न होने का
हिंदी समय में प्रेमशंकर शुक्ल की रचनाएँ